सुनो सबकी करो मन की
-----------------------------
एक मशहूर कथा है। एक बाप और उसका बेटा गधा बेचने निकले। पिता गधे पर सवार था, बेटा पैदल चल रहा था। थोडी दूर चलने पर उन्हें कुछ व्यक्ति मिले। एक व्यक्ति ने कहा- देखो तो यह कैसा पिता है, खुद तो गधे पर सवार है और बेटे को पैदल चला रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता गधे से नीचे उतरा और बेटे को गधे पर बैठा दिया। कुछ और आगे चलने पर कुछ महिलायें मिली। उन्होंने कहा- कैसा बेटा है, बूढा बाप पैदल चल रहा है और खुद मजे से सवारी कर रहा है। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र दोनों पैदल चलने लगे। थोडा आगे जाने पर कुछ और व्यक्ति मिले। वे बोले, दोनों कितने मूर्ख है, हट्टा-कट्टा गधा साथ में है, फिर भी सवारी करने के बजाय दोनों पैदल चल रहे है। उनकी बातें सुनकर दोनों गधे पर सवार हो गये। थोडा आगे आये तो कुछ और लोग मिले। वे बोले- दोनों कितने निर्दयी है। पहलवान जैसे होकर भी दोनों दुबले गधे की सवारी कर रहे है, ऐसा लगता है जैसे ये गधे को मारना चाहते हो। उनकी बातें सुनकर पिता-पुत्र दोनों गधे से उतर गये और दोनों ने मिलकर गधे को उठा लिया। जब वे बाजार पहुंचे तो लोग उन्हें देखकर हंसने लगे। सभी कहने लगे- कितने मूर्ख है, कहां तो उन्हें गधे की सवारी करना चाहिये थी और कहां ये दोनों गधे की सवारी बने हुये है। पिता-पुत्र ने विचार किया, बजाय लोगों की बातों पर ध्यान देने के, इस गधे से ही पूछा जाय, उसका क्या विचार है ? गधे ने मन में सोचा- जब मालिक या उसका उपयोग करने वाले भ्रम में हो, दूसरों के बहकावे में आकर जब वे अपने मूल उद्देश्य से भटक रहे हो तो लाभ मुझे ही मिलना है और गधे ने उत्तर दिया- मैं बडे मजे में हूँ। आशय यह है कि दूसरों की बातों पर अधिक ध्यान न दे। अपने विवेक का उपयोग कर जो सही लगे, वही करे। कहा भी है- सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग ?
Friday, January 11, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment