ॐ श्री राम
पुस्तकें बौद्धिक बनाती है, आध्यात्मिक नही
यह निश्चित है कि प्रत्येक आत्मा को पूर्णता की प्राप्ति होगी। हम इस समय जो भी है, वह हमारे पिछले अस्तित्व और विचारों का परिणाम है। तथा हमारे भविष्य की अवस्था हमारे वर्तमान विचारों और कार्यों पर निर्भर है। हमारे विकास को स्फुरित करने वाला प्रभाव बाहर से आता है। वह हमारी प्रसुप्त शक्तियों को जगा देता है जिससे हमारी उन्नति का प्रारम्भ होती है। अंत में हम पावन और पूर्ण बन जाते है। हम जन्म भर पुस्तकों का अध्ययन करते रहे और बडे बौद्धिक हो जाये, पर अंत में देखेंगे कि आध्यात्मिक दृष्टि से हम कुछ भी विकसित नहीं हुये है। यह आवश्यक नहीं है कि उच्च श्रेणी के बौद्धिक विकास के साथ मनुष्य का आत्मिक विकास भी हो। बुद्धि का उच्च विकास आत्मा की वेदी पर ही होता है।
ग्रन्थों का अध्ययन करते करते कभी कभी हम भ्रम वश ऐसा सोचने लगते है कि हमारी आध्यात्मिक उन्नति में इस अध्ययन से सहायता मिल रही है। पर जब हम आत्म विश्लेषण करते है, तब पता लगता है कि ग्रन्थों से केवल हमारी बुद्धि को ही सहायता मिली है, आत्मा का विकास नहीं हुआ है। यही कारण है कि हर व्यक्ति आध्यात्मिक विषयों पर अद्भूत व्याख्यान तो दे सकता है पर जब कार्य करने का अवसर आता है तो वह अपने को बिल्कुल निकम्मा पाता है। कारण स्पष्ट है कि जो बाह्य शक्ति हमें आत्मोन्नति के पथ पर आगे बढाती है, वह हमें पुस्तकों से नहीं मिल सकती। आत्मा को स्फुरित करने के लिये ऐसी शक्ति किसी दूसरी आत्मा से ही मिल सकती है। जिस आत्मा से वह शक्ति मिलती है, उसे ही गुरु या आचार्य कहते है और जिस आत्मा को वह शक्ति प्रदान की जाती है, उसे शिष्य कहते है।- स्वांमी विवेकानन्द।
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