अत्याचारों का ये सिलसिला तब प्रारम्भ हुआ जब हम प्राथमिक विद्यालय में थे । दुबले पतले होने के कारण हमारे आचार्यजी हमें पंक्ति में सबसे आगे खडा कर देते थे । अब हमारी कक्षा के बाकी विद्यार्थी पीछे खडे होकर मौज लें और हमें रोज सुबह सुबह जूते चमकाकर, बाल बनाकर और राजा बबुआ टाईप का विद्यार्थी बनकर सबसे आगे रहना पडता था । बाकी लडके पंक्ति में सामने खडे लडके की चिंकुटी काट लेते थे, तो कभी स्याही वाले पेन से कुछ चित्र बना देते थे और हम चिल्लाते रह जाते थे कि कोई तो गोला पूरा कर लो ।
हमें सीरियस खडे होकर प्रात:स्मरण, एकात्मता स्त्रोत, सरस्वती वंदना, गायत्री मंत्र और शान्तिपाठ पढना होता था और हमारे पीठ पीछे माधुरी दीक्षित और रवीना और करिश्मा की बातें होती थी । इसी कारण हम हमेशा बबुआ बने रह गये
बचपन में वजन कम होने का एक फ़ायदा ये था कि जब शारीरिक शिक्षा के घंटे में हमें पिरामिड बनानें को कहा जाता था तो मैं सबसे ऊपर होता था । अपने बाकी मित्रों के कंधे पर चढकर मुझे लगता था मानों मैं उनके ऊपर विजयश्री की घोषणा कर रहा हूँ । कभी कभी आचार्यजी भी मुझपर तरस खाकर अपनी प्रिय अरहर की संटी को थोडा धीरे से मारते थे । शायद उनको खुद डर लगता हो कि अगर कोई हड्डी वड्डी टूट गयी तो फ़ालतू में रायता फ़ैल जायेगा, और वैसे भी पढाई में तो हम वैसे भी राजा बबुआ थे । तो कुल मिला कर सींकिया पहलवान होने के फ़ायदे कम और नुक्सान
ज्यादा ।
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